Horror Of Serial Killer Auto Shankar (शंकर ) : कैसे फिल्मों ने जन्म दिया एक सिरियल किलर को ?

Horror Of Serial Killer Auto Shankar (शंकर) : जिसके डर से लोग ऑटो रिक्शा मे बैठने से डरते थे ।

एक एसा खौफ का समय तमिलनाडु के मद्रास शहर से, जो अब चेन्नई बन चुका है । वहा चल रहा था जब लोग रिक्षा में बैठने से डर रहे थे इसके पीछे की वजह था ऑटो शंकर जिसने मद्रास की सड़कों को एक खौफनाक मौत की सड़क बना दिया था ।

तो आज की यह कहानी है इसी शंकर से संबंधित जिसने शराब, सेक्स, खून और शबाब जैसे तमाम घिनौने काम किएगौरी शंकर एक ऐसा साइको या एक सीरियल किलर कह सकते हैं जिसने 9 से ज्यादा लड़कियों को अपना शिकार बनाया । वह एक इतना भयानक इंसान था जो लड़कियों को पहले अगवा करता और उसका मन भरने के बाद उसके दोस्तों में बांट देता और जब उसके दोस्तों का भी मन भर जाए तो वह उन्हें जला के उसकी राख को बंगाल की खाड़ी में फेंक देता ।

तो चलिए जानते हैं यह कहानी विस्तार में गौरी शंकर का जन्म साल 1955 में वेलोर नाम के तमिलनाडु के एक गांव में हुआ था

Horror Of Serial Killer Auto Shankar (शंकर )

गौरी शंकर

उस वक्त तमिलनाडु के ज्यादातर लोग बेरोजगारी के चलते काम के लिए मद्रास में जाया करते । उस राज्य के लिए मद्रास मुंबई जैसा हुआ करता जहां लोग अपने सपनों के साथ उम्मीदों के साथ आया करते और गौरी शंकर भी इनमें से ही एक था जो आंखों में सपने लिए काम की तलाश में मद्रास आ गया । फिल्मों का शौकीन और पेंटिंग्स में दिलचस्पी रखने वाले शंकर को मद्रास भा गया था और वह मद्रास के पेरियार नगर में पेंटिंग का काम करने लगा और वहीं पर एक छोटे से घर में रहने लगा । पेंटिंग करते-करते उसने ऑटो चलाना भी सीख लिया

और उस समय मद्रास आज के जैसा विकसित शहर नहीं था जो तिरुवनमयूर आज चेन्नई के पॉश एरिया में आता है वह उस समय बहुत सुनसान शहर हुआ करता । तिरुवनमयूर से लेके महाबलीपुरम जो इलाका है यह मछवारोका का हुआ करता था । इतना शांत इलाका हुआ करता कि पुलिस कभी पेट्रोलिंग करने भी नहीं आती और यही सुनसान इलाका अवैध शराब का अड्डा बन गया था । जहां कोई शक भी नहीं कर सकता अब गौरी शंकर एक ऑटो ड्राइवर से एक कदम आगे बढ़ गया था वो ऑटो चलाने के साथ-साथ ऑटो में तस्करी किया करता अवैध शराब की तस्करी

80 का जो दौर था यह मद्रास के राजनीति के लिए बहुत उतार चढ़ाव वाला था । और आप जानते हैं कि राजनीति में जो भी होता है उससे एक आम आदमी के जिंदगी में भी बहुत फर्क पड़ता है । इस समय तमिलनाडु के सरकार ने राज्य में शराब बंदी कर दी और ये शराब बंदी एक बार नहीं बल्कि दो बार हुआ था और फिर क्या इसके बाद शराब की काला बाजारी होने लगी और इसी में एक नाम गौरी शंकर का भी था । गौरीशंकर के पास तिरुवनमयूर के सुनसान होने का बहुत फायदा था इस इलाके में अवैध शराब के ठेके लगने लगे थे और इसी शराब को ले जाने और बेचने में रिक्षाओका इस्तेमाल होने लगा तो सोचिए क्या आप किसी रिक्षावाले पर संदेह कर सकते हैं । बड़ी चालाकी से यह सब होने लगा गौरी शंकर इतना आगे बढ़ चुका था कि तिरुवन

मयूर से महाबलीपुरम तक वह सबसे ज्यादा शराब सप्लाई करने लगा । इसी के चलते उसे शराब फिल्म और शबाब का नशा चढ़ गया वो एक कदम और आगे बढ़ गया और ऑटो शंकर ऑटो से लड़कियोकीभी तस्करी करनी शुरू कर दी ।

यहां से उसकी एंट्री मद्रास के हाई सोसाइटी में होती है देह व्यापार यानी लड़कियों को बेचना उसने अपने खुद का एक गैंग बनाया था और उसी का भाई उसका राइट हैंड हुआ करता था । और साथ में दो और खास लोग एल्डिन और शिवाजी और करीबन 10 लोग और जो इस खतरनाक गैंग के लिए काम करते । लेकिन गौरी शंकर का भरोसा सिर्फ मोहन, एल्डिन और शिवाजी पर था मोहन जो उसका भाई था यहां पे सभी बड़े कामों को सफाई से अंजाम दिया जाता स्थानिक प्रशासन भी इससे परेशान हो गया था साथ ही देह व्यापार का धंधा भी शिखर पर चल रहा था । पेरियार नगर में उसका अड्डा हुआ करता था

क्योंकि उस वक्त कोई डेवलपमेंट नहीं थी और एक छोटी जगह होने के कारण कोई संदेह भी नहीं करता और यह काला धंधा पेरियर की छोटी सी जुग्गीओमे में होने लगा । और जब यह बहुत ही ऊंची शिखर पर पहुंचा तो इसकी एक ब्रांच मद्रास की साउथ की एक मशहूर और व्यस्त सड़क एलबी रोड की लॉज में खो खोल दिया गया । यकीन नहीं कर सकते पर उसके साथ वहां के कुछ पुलिस वाले भी उसका साथ देने लगे और सबसे ज्यादा मशहूर वह तब हुआ जब उसने मिनिस्टर और बड़े ऑफिसर्स को लड़कियां सप्लाई करना शुरू किया । अब गौरी शंकर पीछे मुड़के कतई नहीं देखने वाला था उसका मुनाफा 100 गुना ज्यादा बढ़ चुका था इसी बेफिक्र में वह रहने लगा कि मद्रास में अब वह कुछ भी कर सकता है । मद्रास को वह अपना घर ही मान बैठा था और कई खतरनाक वरदातों को अंजाम देना उसने शुरू कर दिया था ।

फिल्मों का शौकीन होने के कारण उसे डांस बहुत पसंद था वह अक्सर फिल्मों की दुनिया में ही रहता और यही सब देखकर उसे लड़कियों की छेड़खानी करने और बलात्कार करने के विचार आने लगे । दिन बढ़ते गए धंधा बढता गया और फिर एक दिन समय ने गुलाटी मार दी साल 1987 पुलिस के मुताबिक एक युवा महिला ललिता शंकर यह पहली पीड़िता थी जिस परे शंकर का खौफ बरस चुका था । वह शंकर से छुटकारा चाहती थी इसलिए वह अपनी एक साथी सुधा लाई सुदू के साथ वहां से भाग निकली लेकिन उसका पीछा करा गया और उसे पिरियार नगर वापस लाया गया । यहां पर लाकर इनकी हत्या कर दी और लाशों को जला दिया गया

और अवशेष एक कंबल में लपेटकर बंगाल की खाड़ी में फेंक दिए गए । इसके कुछ समय बाद शंकर का सामना मोहन, गोविंद, संपद से हुआ जिन्होंने कुछ महिलाओं को एलबी रोड लॉज से ले जाने का प्रयास किया और फिर बड़ा झगड़ा हुआ शंकर इन तीनों ने इतना पीटा कि उनकी वही मौत हो गई । और फिर उन्हें पिरियार नगर लाके लाशों को जला दिया और अवशेष वहीं दफना दिए । इन हत्याओं के बाद उसने रवि नाम के लड़के की भी हत्या कर दी । 24 दिसंबर 1987 को इंद्रजी रामचंद्र का निधन हो गया

और जनवरी 1988 और 1989 के बीच वहा राजनीतिक संकट का दौर रहा । ऐसे स्थिति में वहां राज्यपाल शासन लागू कर दिया गया था जैसे कि मैंने आपको पहले ही कहा कि पॉलिटिक्स में चेंजेज होने पर एक आम आदमी के जिंदगी पर भी प्रभाव पड़ता है । यहां भी पड़ रहा था पुलिस शंकर को पकड़ नहीं पा रही थी और इसके चलते पीड़ितों के घरवाले पहुंचे सीधा राज्यपाल पीसी एलेग्जेंडर के पास उन्होंने पुलिस महानिरीक्षक जफर अली को मामले की जांच के आदेश दिए और एक नई टीम बनाने के आदेश दिए । इसी टीम में पड़ोसी तिरुवन मलाई के जिले का एक पुलिस कांस्टेबल भी था जो शंकर के प्रभाव में था । जो शंकर से परिचित था और अच्छी तरीके से उसे जानता था इसके इनपुट पुलिस को बहुत काम आए और शंकर को पकड़ लिया गया

Horror Of Serial Killer Auto Shankar (शंकर )

पुलिस ने उससे सारे हत्याओं की पूछताछ की और पुलिस ने फिर उसके घर की तलाशी ली । 1988 में उसके घर से लोगों के कंकाल मिले जिससे आसपास के इलाके में सनसनी फैल गई । खबर मीडिया में आई और मीडिया भी उस समय अपना काम बेहद अच्छी तरीके से निभाती थी और मीडिया ने उसे नया नाम दिया ऑटो शंकर शंकर के साथ मिले कुछ पुलिस वालों के भी नाम सामने आए और उन्हें ऑन द स्पॉट सस्पेंड किया गया । शंकर को बाद में मद्रास जेल भेजा गया जहां से वो अगस्त 1990 में भागने में वह सफल रहा बाद में उसे उड़ीसा के रोर किला से गिरफ्तार किया गया और इसके भागने के प्लान में उसके साथ तीन जेल के कर्मचारी को गुनहगार बताया गया और उन्हे निलंबित किया गया । शंकर के भाई सिल्वा, जेल वर्डन, कनन, बलम और रहीम खान को अपराधी षड्यंत्र रचने के लिए 6 महीने सक्षम कारावास की सजा

सुनाई । अब यहां से इसके खिलाफ कोर्ट में ट्रायल शुरू हो गया पुलिस के मुताबिक शंकर पर रवि, ललिता, सुधालई ,मोहन ,संपद के हत्याओका मुकदमा चला । इन लोगों को मारने के बाद या तो जला दिया गया था या घर के अंदर दफना दिया गया शंकर ने कोर्ट के सामने अपनी सुरक्षा में एक चौकाने वाला जवाब दिया कि सभी हत्याओं के पीछे सिनेमा जिम्मेदार है । जी हां सिनेमा उसे सिनेमा में दिखाए क्राइम के वजह से ही यह सब हुआ उसे सिनेमा देखकर प्रेरणा मिलती थी और वह फिल्मी दुनिया और वास्तविक दुनिया का फर्क ही भूल जाता । इस बात को उस समय के एडिशनल जनरल ऑफ पुलिस ने भी माना था ।

कि सिनेमा से

सीखकर ही उसने अपने अपराधों को अंजाम दिया परंतु बाद में जो भी शंकर ने बताया वह बहुत हैरान करने वाला था उसने अपने कबूल नामे में कहा कि जिन भी लड़कियों को उसने किडनैप किया था वह सब पॉलिटिशियन के लिए थी । उसने कहा कि जब पॉलिटिशियन उनका इस्तेमाल करते तो वह उन्हें मारकर समंदर में फेंक देता । पर इसके बावजूद भी एक भी पॉलिटिशियन पर केस नहीं दर्ज हुआ नाही किसी का नाम सामने आया कोर्ट में मामला सामने आने के बाद साल 1988 से साल 1989 तक 2 साल के बीच हुए 6 मर्डर के लिए ऑटो शंकर और उसके खतरनाक गैंग को दोषी ठहराया गया शंकर को एल्डिन और शिवाजी के साथ मौत की सजा सुनाई । और बाकी के कैदियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई इसी क्रम में 4 साल तक जेल में बंद रहने के बाद 27 अप्रैल 1995 को तालीम सेंट्रल जेल में उसे फांसी

लगाई गई

और यही पे ऑटो शंकर की कहानी खत्म हुई ।

तो येथी आज की कहानी ।

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